आज कुछ लिखने का मन हुआ ,अभी कुछ दिनों से मै अपने दादाजी के घर गयी हुई थी जोकि पटना से कोई 20 किलोमीटर की दुरी पर है ,असल मे मेरे चाचाजी के बेटे की शादी थी ,मेरे पिताजी भेल भोपाल मे जॉब के चलते भोपाल मे ही बस गए थे ,हमारा वो पुस्तैनी घर से रिश्ता बस शादी या कोई दुर्घटना के समय पहुच जाना जितना ही रह गया था ...फिर मेरी शादी के बाद ये सिलसिला भी मेरे हाथ से चला गया था ,अब जब ये मौका मिला घर खानदान की आखरी शादी मे शामिल होने का तो मै खासी उत्साहित थी ट्रेन मे बैठे बैठे सारे पल बचपन के जो हमने वहां बिताये थे आँखों के सामने घुमने लगे ,वहां कुछ दिन बिताने के बाद मेरा सारा उत्साह ठंडा पड चूका था ..फिर जो कविता निकली मन से वो आपसे शेयर कर रही हूँ .
बरसो बाद
अपने घर लौटना हुआ
अजीब सी ख़ुशी थी
पलके भीगी हुई थी
सबने गले लगाया
कुछ उलाहना भी दिया
फिर कुछ घंटो मे ही
अनुमान हो गया
जिस चीज़ की खोज
मुझे यहाँ लायी थी
वो लगाव तो कहीं खो गया
उनके चेहरों पर था एक डर
अनजाना सा
समझ पाई तब जाना
उन्हें लगा था मै कहीं
उस जायजाद की बात न करू
जो मेरे पिता ने कभी मागी नहीं
तब मुझे अहसास हुआ
बचपन मै जो आंगन
बहुत बड़ा हुआ करता था
हम ढेर सारे भाई बहन
को अपनी गोद मै लिए
खिलखिलाता था
आज अचानक मुझे
छोटा छोटा क्यों लगा
मन ही मन मै मुस्कुराई
बहुत देर से ही सही
मै ये गूढ़ रहस्य समझ तो पाई
घर बड़ा या छोटा नहीं होता
उनमे रहने वाले
उसे छोटा करते या विस्तार देते है
प्यार ,यादे ,रिश्ते भी जायदाद है
कभी कभी बड़े भी नही समझ पाते हैं
मै अपना हिस्सा अपने साथ ले आई....
अपनी बचपन की सारी यादो को
समेटकर मै वापस चली आई
हजरों लोगो से रोज़ मिलना जिंदगी का हिस्सा है कभी तन्हाई मे खुद से भी मिलना अच्छा लगता है .
Thursday, December 23, 2010
Monday, November 29, 2010
मेरे हिस्से का सूरज ..
तुमसे मिलना ,
एक अजीब इतफाक था
अँधेरे मे गूम होते
मेरे अस्तित्व
को एक सूरज तुमने दिया था
जिसकी रौशनी मे
मैंने खुद को जाना
जीवन ख़तम नहीं हुआ
इस बात को भी पहचाना
अजीब मंज़र था वो भी
अपना हाल
किसी को भी न सुनाने वाली लड़की
एक अजनबी के सामने
तार तार होके बिखर गयी थी
तुमने बहुत ख़ामोशी
से सबकुछ सुना था
तुम्हरी मदद से
मैंने वापस जिंदगी का
ताना बाना बुना था
तुम्हारा संतावना देता स्पर्श
आज भी महसूस करती हूँ
आज भी जब भी अँधेरा होता है
वो सूरज रोशन करता है जीवन
जो तुमने मुझे दिया था
तब मैंने जाना था
एक पुरुष और स्त्री
का सम्बन्ध
ऐसा भी हो सकता है
अगर इसे नाम देना
जरुरी हो तो
कह सकती हूँ
तुम हो
मेरे हिस्से का सूरज .
Tuesday, November 23, 2010
तेरे साथ का वादा
एक अजीब सी कमी है .
जैसे खुशबू ही न हो जीवन मे ,
भले ही वो फूल सी खिली है .
तुम जो साथ होते हो ,
अजब चमत्कार होता है .
मंजिल तक जाकर लगता है ऐसा,
जैसे मै नहीं मंजिल मेरे पास तक चली है .
रास्ता पता है तो भी क्या ,
तुम साथ आओगे इसलिए रुकी हूँ .
तुम साथ होकर भी साथ हो या न हो ?
बस ये प्रश्न पर मै उम्र भर ढगी हूँ .
उगते हुए सूरज का नर्म उजाला ,
आकर्षित करता है तो क्या .
सिर्फ तेरे साथ का वादा हो तो ,
मै अंधेरो मै ही भली हूँ.
Thursday, October 28, 2010
ये जिन्दगी एक इम्तिहान
नर्म मुलायम सी
खुबसूरत सी दिखती है जिन्दगी,
भीतर गर्म लावे सी पिघलती है
पल पल ये जिंदगी ,
मौहौल है मैला मैला सा
हर इंसान है भटका भटका सा,
किस से क्या उम्मीद करूँ
हर तरफ है मायूसी ,
हर चेहरे पर है बेचारगी
हालात ऐसे ही बनाती है जिंदगी,
एतबार जो बहुत था खुद पर
कतरा कतरा बिखर गया,
जाना था किस राह मुझे
कहाँ ले आई मुझे ये जि,न्दगी
गिर के फिर से उठ कर
चलने की जिद करती हूँ,
खीचने को वापस गर्त मे
मचलती है जिंदगी.
मुझे भी जिद है बर्बाद होने की
रोकने से रुकुगी नहीं,
ले ले कितने भी
इम्तिहान ये जिन्दगी.
(चित्र गूगल से साभार )
.
Thursday, October 7, 2010
प्रकृति की पुकार सुनो.......

आज मे खिड़की पर खड़ी थी
तेज़ी से भागते यातायात व
आते जाते लोगो को देख रही थी
तभी मेरी नज़र
अपने बगीचे के पेड़ पौधों पर पड़ी
लगा जैसे वो शिकायत कर रहे हैं
और नाराज़गी से घुर रहे है
जैसे कह रहे हो
अब तुम्हरे पास हमारे लिए वक्त ही नहीं है
पहले रोज़ प्यार से सींचा दुलारा करती थी
घंटो निहारा करती थी
जेहन पर एक झटका सा लगा
वाकई मे जीवन की भाग दौड़
प्रकृति से दूर करती जा रही है
और हमें अहसास तक नहीं है
तभी प्रकृति को रौद्र रूप मे
आना पड़ता है
कभी सुनामी बनकर
तो कभी हमारी बुनियाद को हिला कर
अपने होने का अहसास करना पड़ता है
तन्हा सफ़र .......

साथ चलते तो बहुत है
साथ होते बहुत कम है
बहुत कम पढ़ पाते हैं
आपकी हंसी के पीछे जो गम है
उम्र भर साथ चलके
वफ़ा का सबूत मांगते है हमसे
संबंधो का ये बिखरा रूप देखकर
खुद से बहुत सर्मिन्दा आज हम है
कुछ रिश्ते है अब भी है जीवन मे
जो मन को अच्छे लगते हैं '
पर जीवन की इस भागदौड़ मे
उन तक मेरी पहुच बहुत कम है ....
Tuesday, October 5, 2010
उम्मीद
देखती हूँ खुद को
रोज़ अपने अस्तित्व
की लड़ाई लडते हुए ,
चाहे अनचाहे रिश्ते
लगातार ढ़ोते हुए ,
खुद के सुनाय फैसलों पर
खुद को रोते हुए ,
अपनी नाकामी छुपा कर
खुद को मुस्कुराते हुए
जतन से सजाये हुए सपनो को
टूट कर बिखरते हुए
एकाएक कुछ देख कर चौक जाती हूँ
फिर से उसे महसूस करने से घबराती हूँ
जादातर वादे जो जिन्दगी मे टूटे ,
वो सब मैंने ही खुद से किये थे ,
जादातर नाकामी की वजह ,
सिर्फ मेरी कमजोर कोशिश थी ,
हकीकत को समझ कर
फिर से संभालते हुए ,
नए सिरे से सहेजने की कोशिश
खुद को करते हुए ,
भीगी हुई आँखों को
इत्मीनान से मुस्कुराते हुए
Tuesday, September 28, 2010
मन की उलझन
कभी कभी जिंदगी बहुत अजीब लगती है ,
जैसे बेमतलब सी बस सांसे भरती है ,
जीना है इसलिए बस जिए जा रहे है
जबरदस्ती कोई बोझ सा ढोए जा रहे है
जिस रह पर चले है उसकी कोई मंजिल नहीं है
लौट पाना भी जहाँ से मुमकिन नहीं है ,
बहुत लोग साथ है पर जैसे कोई साथ नहीं है ,
हर हंसी के पीछे दर्द बहुत गहरा है .
Friday, September 24, 2010
उसकी याद मे ....
उससे कोई ख़ास वास्ता न था ,
साथ ही का बस रिश्ता भर था ,
कभी कभी मिलना मुस्कुराना
बस संवाद इतना ही था
आज उसका आचानक चला जाना
इतना उदास करेगा सोचा न था
सबको समझने का दावा करनेवाला मन
खुद ही खुद से कितना अनजाना है,
Friday, September 17, 2010
एक और इशारा खुद को पाने का ..
उन्होंने कहा सबसे प्यार करो
जिन्दगी खुद ही प्यारी हो जाएगी
मैंने कोशिश की पर हो नहीं पाया
हर किसी के लिए प्यार पनप नहीं पाया
मैंने उन्हें कहा मेरी समस्या का हल करो
मेरे अन्दर भी कुछ रूहानियत भरो
उन्होंने कहा पहले जो भरा है उसे बाहर करो
क्रोध ,नफरत , इर्षा ,इन सबको अलविदा कहो.
जब पात्र ख़ाली होगा तभी तो कुछ भरेगा
तुम तो पहले ही इतना सब भरे बैठे हो,
सारी धुंद को खुद मे से साफ करे,सबको माफ़ करो
तभी सबको और खुद को सचमे प्यार कर पाओगे
जिन्दगी खुद ही प्यारी हो जाएगी
मैंने कोशिश की पर हो नहीं पाया
हर किसी के लिए प्यार पनप नहीं पाया
मैंने उन्हें कहा मेरी समस्या का हल करो
मेरे अन्दर भी कुछ रूहानियत भरो
उन्होंने कहा पहले जो भरा है उसे बाहर करो
क्रोध ,नफरत , इर्षा ,इन सबको अलविदा कहो.
जब पात्र ख़ाली होगा तभी तो कुछ भरेगा
तुम तो पहले ही इतना सब भरे बैठे हो,
सारी धुंद को खुद मे से साफ करे,सबको माफ़ करो
तभी सबको और खुद को सचमे प्यार कर पाओगे
Thursday, August 19, 2010
जीवन तेरे रूप अनेक
कभी उदासी की छाव
कभी खुशी की धुप
बहुत हैरान करते हैं
पल पल बदलते जीवन के रूप
टूट कर जुड़ना
जुड़ के फिर से टूटना
जब तक सांस चलती है
ये क्रम चलता है
कभी आपका होना
निरर्थक सा लगता है
कभी आपके अपने
उसे अर्थपूर्ण बना देते हैं
हजरों लोगो से रोज़ मिलना
जिंदगी का हिस्सा है
कभी तन्हाई माय खुद से भी मिलना
अच्छा लगता है .
शूभ दिन
मंजुला
कभी खुशी की धुप
बहुत हैरान करते हैं
पल पल बदलते जीवन के रूप
टूट कर जुड़ना
जुड़ के फिर से टूटना
जब तक सांस चलती है
ये क्रम चलता है
कभी आपका होना
निरर्थक सा लगता है
कभी आपके अपने
उसे अर्थपूर्ण बना देते हैं
हजरों लोगो से रोज़ मिलना
जिंदगी का हिस्सा है
कभी तन्हाई माय खुद से भी मिलना
अच्छा लगता है .
शूभ दिन
मंजुला
Monday, August 9, 2010
व्यथा
जीना बहुत आसन है ,
हँसना भी मुस्किल नहीं
पर परते उतारना हमारी आदत है,
अच्छाई को छिल कर बुराई निकलना ,
हमें सुख देता है सुकून देता है ,
अच्छाई को गुना करने की किसी को फुर्शत नहीं ,
बुराई को पल मे कई गुना करना हमारी ताकत है ,
सच खुसबू मे लिपटा हुआ आता है ,
हमारी हरकतों से बदबूदार होके लौट जाता है
खुद ही सबकुछ मुस्किल करते है
फिर कहते है जीना मुस्किल है
मुस्कुराना आसन नहीं
यही आज का जीवन है
यही सच है इस दौर का
हँसना भी मुस्किल नहीं
पर परते उतारना हमारी आदत है,
अच्छाई को छिल कर बुराई निकलना ,
हमें सुख देता है सुकून देता है ,
अच्छाई को गुना करने की किसी को फुर्शत नहीं ,
बुराई को पल मे कई गुना करना हमारी ताकत है ,
सच खुसबू मे लिपटा हुआ आता है ,
हमारी हरकतों से बदबूदार होके लौट जाता है
खुद ही सबकुछ मुस्किल करते है
फिर कहते है जीना मुस्किल है
मुस्कुराना आसन नहीं
यही आज का जीवन है
यही सच है इस दौर का
Thursday, August 5, 2010
जिंदगी से जिंदगी चुराना सिख लिया,
अस्को से आसिकी निभाना सिख लिया ,
जिंदगी क्या मौखोल उड़ा पायेगी मेरा ,
उसकी हर चाल पर मुश्कुराना मैंने सिख लिया ,
खवाबो के पीछे भागना मैंने छोड़ दिया,
उन्हें कैसे खुद अपने पीछे लाना है ये सिख लिया ,
ख़ुशी या रंज कोई डिगा न सकेगे कदम मेरे ,
हर हाल मे चलते जाना मैंने सिख लिया ,
खुद मे संवेदनायों का मरते जाना बहुत सालता था मुझे ,
अब मैंने खुद को खुद के अन्दर जिन्दा रखना सिख लिया .
द्वारा मंजुला
शुभ दिन
अस्को से आसिकी निभाना सिख लिया ,
जिंदगी क्या मौखोल उड़ा पायेगी मेरा ,
उसकी हर चाल पर मुश्कुराना मैंने सिख लिया ,
खवाबो के पीछे भागना मैंने छोड़ दिया,
उन्हें कैसे खुद अपने पीछे लाना है ये सिख लिया ,
ख़ुशी या रंज कोई डिगा न सकेगे कदम मेरे ,
हर हाल मे चलते जाना मैंने सिख लिया ,
खुद मे संवेदनायों का मरते जाना बहुत सालता था मुझे ,
अब मैंने खुद को खुद के अन्दर जिन्दा रखना सिख लिया .
द्वारा मंजुला
शुभ दिन
Thursday, July 15, 2010
कब तक खुद को खुद से अनजाना सा रखे
झूट मुट खुश रहने का क्यों भरम सा रखे
मन के भीटर सबकुछ बिखरा बिखरा है ,
ऊपर से कब तक खुद को सहज सुलझा रखे.
जीवन के उल्घे धागों को सुलझा ही लेगे कभी ,
कब तक इस भरम को खुद मे जिन्दा रखे .
हर तरफ राह मे पत्थर और कांटे है ,
पल पल घायल होते तन मन को कैसे महफूज़ रखे
झूट मुट खुश रहने का क्यों भरम सा रखे
मन के भीटर सबकुछ बिखरा बिखरा है ,
ऊपर से कब तक खुद को सहज सुलझा रखे.
जीवन के उल्घे धागों को सुलझा ही लेगे कभी ,
कब तक इस भरम को खुद मे जिन्दा रखे .
हर तरफ राह मे पत्थर और कांटे है ,
पल पल घायल होते तन मन को कैसे महफूज़ रखे
Tuesday, July 13, 2010
मुझे मेरे हाल पर छोड़ क्यों नहीं देते ,
नाम का बचा है जो रिश्ता उसे भी तोड़ क्यों नहीं देते ,
जब भी मिलते हो हम बहुत ख़ास है ये ही बताते हो ,
कब तक पहनोगे ये नकाब ?इसे उतार क्यों नहीं देते ,
बहुत अजीब रूहानी सा एक रिश्ता जोड़ा था तुमसे ,
वो मेरा पागलपण था ये एक बार मुझे कह क्यों नहीं देते ,
न चाहते हुए भी बहुत इंतज़ार होता है तुम्हारा,
अब कभी लौट के न आओगे ये एक बार कह क्यों नहीं देते .
नाम का बचा है जो रिश्ता उसे भी तोड़ क्यों नहीं देते ,
जब भी मिलते हो हम बहुत ख़ास है ये ही बताते हो ,
कब तक पहनोगे ये नकाब ?इसे उतार क्यों नहीं देते ,
बहुत अजीब रूहानी सा एक रिश्ता जोड़ा था तुमसे ,
वो मेरा पागलपण था ये एक बार मुझे कह क्यों नहीं देते ,
न चाहते हुए भी बहुत इंतज़ार होता है तुम्हारा,
अब कभी लौट के न आओगे ये एक बार कह क्यों नहीं देते .
Monday, June 28, 2010
मैंने जब भी खुद को उदास पाया,
सदा उसका साया अपने साथ पाया,
मेरे हर दर्द पर उसकी आँखों मै नमी थी ,
मे महसूस नही कर पाई ,ये मेरी ही कमी थी .
उसकी गहराई मेरे समघ के बहार की चीज़ थी ,
फिर भी उसे मेरी समघ पर सदा ऐतबार था ,
मे कहती रही मुझे ही उससे सबसे जादा प्यार है ,
उसने कहा कुछ नहीं बस प्यार महसूस कराया है
सब छोड़ कर आगे निकल गए जिनपर मुझे ऐतबार था,
पर आज भी मुझपर उसका साया है .
सदा उसका साया अपने साथ पाया,
मेरे हर दर्द पर उसकी आँखों मै नमी थी ,
मे महसूस नही कर पाई ,ये मेरी ही कमी थी .
उसकी गहराई मेरे समघ के बहार की चीज़ थी ,
फिर भी उसे मेरी समघ पर सदा ऐतबार था ,
मे कहती रही मुझे ही उससे सबसे जादा प्यार है ,
उसने कहा कुछ नहीं बस प्यार महसूस कराया है
सब छोड़ कर आगे निकल गए जिनपर मुझे ऐतबार था,
पर आज भी मुझपर उसका साया है .
पता नहीं इंसान की कैसी फितरत है
वही अजीज़ है जो हासिल मुस्किल hai,
उस पाक रह पर वो ले चला है मुझे ,
पर बार बार भटक जाना मेरी किस्मत है ,
उपरी ख़ुशी से दूर एक रूहानी सुकून भी है ,
समघ कर भी उसकी बात बहुत अनजान हूँ उस से ,
वो जानता है अंत मै उनकी पनाह ही मुझे आना है ,
मेरे इंतज़ार मै सदियों से पलके बिछाये बैठा है
वही अजीज़ है जो हासिल मुस्किल hai,
उस पाक रह पर वो ले चला है मुझे ,
पर बार बार भटक जाना मेरी किस्मत है ,
उपरी ख़ुशी से दूर एक रूहानी सुकून भी है ,
समघ कर भी उसकी बात बहुत अनजान हूँ उस से ,
वो जानता है अंत मै उनकी पनाह ही मुझे आना है ,
मेरे इंतज़ार मै सदियों से पलके बिछाये बैठा है
तुम जब मिले
कोई दोस्त न था जीवन मै,
सब ढल चूका था
कोई रंग न था जीवन मै ,
तुम दोस्त बनके जीवन मै सामिल हुए
और मुस्कान बनके मेरे जीवन मै छा गए
कोई रिश्ता ऐसा भी होगा कोई मान नहीं पायेगा
"दोस्त" नाम के इस रिश्ते को कौन समझ पाएगा
प्यार ,आत्मीयता,आदर सबकुछ है फिर भी ,
जरुरी नहीं सबकुछ कहा ही जाये ,
दुःख सुख सब मिलके बाट लेते है ,
दूर होके भी ये क्या कम है ,
जब भी तुम अकेला महसूस करो कभी भी ,
भूल मत जाना तुम्हरे दोस्त हम है
तुम्हारे दोस्त हम है ,
कोई दोस्त न था जीवन मै,
सब ढल चूका था
कोई रंग न था जीवन मै ,
तुम दोस्त बनके जीवन मै सामिल हुए
और मुस्कान बनके मेरे जीवन मै छा गए
कोई रिश्ता ऐसा भी होगा कोई मान नहीं पायेगा
"दोस्त" नाम के इस रिश्ते को कौन समझ पाएगा
प्यार ,आत्मीयता,आदर सबकुछ है फिर भी ,
जरुरी नहीं सबकुछ कहा ही जाये ,
दुःख सुख सब मिलके बाट लेते है ,
दूर होके भी ये क्या कम है ,
जब भी तुम अकेला महसूस करो कभी भी ,
भूल मत जाना तुम्हरे दोस्त हम है
तुम्हारे दोस्त हम है ,
मन उदास तो है
पर एक सुकून सा है ,
चले जाना उसका इस तरह
तकलीफ देता तो है ,
फिर भी उसको जबरदस्ती रोकना
जादा तकलीफ देता था,
मै बहुर खुश थी उसके साथ
पर उसे इस बात का यकीं न था,
मै हमेशा उसके साथ थी मगर
वो साथ होके भीकभी मेरे साथ न था ,
मैंने ही उसे जाने दिया ये बात चुभती तो है
फिर भी पता नहीं क्यों उसका जाना सुकून दे गया
पर एक सुकून सा है ,
चले जाना उसका इस तरह
तकलीफ देता तो है ,
फिर भी उसको जबरदस्ती रोकना
जादा तकलीफ देता था,
मै बहुर खुश थी उसके साथ
पर उसे इस बात का यकीं न था,
मै हमेशा उसके साथ थी मगर
वो साथ होके भीकभी मेरे साथ न था ,
मैंने ही उसे जाने दिया ये बात चुभती तो है
फिर भी पता नहीं क्यों उसका जाना सुकून दे गया
जब भी तनहा मै होती हूँ,
खुद के बहुत करीब होती हूँ ,
बहुत से सवालो के जवाब मिलते हैं
जब हम खुद के साथ होते है,
खुद के बहुत करीब होती हूँ ,
बहुत से सवालो के जवाब मिलते हैं
जब हम खुद के साथ होते है,
Friday, April 30, 2010
खुश रहना
सच बोलना
दूशरो की मदद करना
नम्रता
जो है उसमे खुश रहना
दयालू होना
ये सब मनुष्य के स्वभाबविक गुण है
कोई धर्म या किताबो से सिखने की चीज़ नहीं .
चलिए मनुष्य बने
इन गुणों को खुद मै वापस जिंदा करे
सच बोलना
दूशरो की मदद करना
नम्रता
जो है उसमे खुश रहना
दयालू होना
ये सब मनुष्य के स्वभाबविक गुण है
कोई धर्म या किताबो से सिखने की चीज़ नहीं .
चलिए मनुष्य बने
इन गुणों को खुद मै वापस जिंदा करे
Tuesday, March 23, 2010
मेरा यकीन कितना सच्चा है पता नहीं,
वो सच है या धोका पता नहीं,
भर गया था उनके आने से मन का वो कोना ,
जो अब तक रहा था बहुत सूना,
हर कदम वो मेरे साथ चले ,
वो सच है या धोका पता नहीं,
भर गया था उनके आने से मन का वो कोना ,
जो अब तक रहा था बहुत सूना,
हर कदम वो मेरे साथ चले ,
ऐसा हमने कभी चाहा नहीं ,
कभी कभी छोटी सी रौशनी भी बहुत होती है ,
जीवन भर वो साथ चले ये जरुरी भी नहीं,
Wednesday, March 17, 2010
एक प्यास सदा इंसान के साथ रहती है,
कुछ पा लेने की कुछ बन जाने की ,
कुछ अलग दिखने की अलग करने की,
आम से ख़ास बन सकने की प्यास,
कभी मारती है कभी जिन्दा रखती ,
बहुत अजीब सी होती है ये प्यास,
कुछ पा कर और कुछ पाने की प्यास ,
अगर ये न हो तो रुक जाता है हार जाता है इंसान ,
कभी प्यार ,कभी नफरत ,कभी दोस्त कभी दुश्मन सी
जीवन भर साथ चली ये प्यास.
कुछ पा लेने की कुछ बन जाने की ,
कुछ अलग दिखने की अलग करने की,
आम से ख़ास बन सकने की प्यास,
कभी मारती है कभी जिन्दा रखती ,
बहुत अजीब सी होती है ये प्यास,
कुछ पा कर और कुछ पाने की प्यास ,
अगर ये न हो तो रुक जाता है हार जाता है इंसान ,
कभी प्यार ,कभी नफरत ,कभी दोस्त कभी दुश्मन सी
जीवन भर साथ चली ये प्यास.
छोड़ कर कल का अँधेरा ,
एक लम्बी सांस लो,
बीत गया सो बीत गया ,
आज फिर एक नयी आस लो,
रास्ता मुस्किल तो क्या,
फासला जादा तो क्या ,
मंजिल मिलेगी जरुर ,
मन मै ये विस्वास लो ,
एक लम्बी सांस लो,
बीत गया सो बीत गया ,
आज फिर एक नयी आस लो,
रास्ता मुस्किल तो क्या,
फासला जादा तो क्या ,
मंजिल मिलेगी जरुर ,
मन मै ये विस्वास लो ,
मुझे अच्छा लगता है खुद से बातें करना,
तन्हाई मै बैठ कर खुद से सवाल जवाब करना
थक गई थी खुद को दुनिया की नज़र से देख कर,
बहुत अद्भुत था वो खुद से मिल के देखना .
तन्हाई मै बैठ कर खुद से सवाल जवाब करना
थक गई थी खुद को दुनिया की नज़र से देख कर,
बहुत अद्भुत था वो खुद से मिल के देखना .
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