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khud ko khojne ka safar

Monday, June 28, 2010

मैंने जब भी खुद को उदास पाया,
सदा उसका साया अपने साथ पाया,
मेरे हर दर्द पर उसकी आँखों मै नमी थी ,
मे महसूस नही कर पाई ,ये मेरी ही कमी थी .
उसकी गहराई मेरे समघ के बहार की चीज़ थी ,
फिर भी उसे मेरी समघ पर सदा ऐतबार था ,
मे कहती रही मुझे ही उससे सबसे जादा प्यार है ,
उसने कहा कुछ नहीं बस प्यार महसूस कराया है
सब छोड़ कर आगे निकल गए जिनपर मुझे ऐतबार था,
पर आज भी मुझपर उसका साया है .
पता नहीं इंसान की कैसी फितरत है
वही अजीज़ है जो हासिल मुस्किल hai,

उस पाक रह पर वो ले चला है मुझे ,
पर बार बार भटक जाना मेरी किस्मत है ,

उपरी ख़ुशी से दूर एक रूहानी सुकून भी है ,
समघ कर भी उसकी बात बहुत अनजान हूँ उस से ,

वो जानता है अंत मै उनकी पनाह ही मुझे आना है ,
मेरे इंतज़ार मै सदियों से पलके बिछाये बैठा है
तुम जब मिले
कोई दोस्त न था जीवन मै,
सब ढल चूका था
कोई रंग न था जीवन मै ,
तुम दोस्त बनके जीवन मै सामिल हुए
और मुस्कान बनके मेरे जीवन मै छा गए
कोई रिश्ता ऐसा भी होगा कोई मान नहीं पायेगा
"दोस्त" नाम के इस रिश्ते को कौन समझ पाएगा
प्यार ,आत्मीयता,आदर सबकुछ है फिर भी ,
जरुरी नहीं सबकुछ कहा ही जाये ,
दुःख सुख सब मिलके बाट लेते है ,
दूर होके भी ये क्या कम है ,
जब भी तुम अकेला महसूस करो कभी भी ,
भूल मत जाना तुम्हरे दोस्त हम है
तुम्हारे दोस्त हम है ,
मन उदास तो है
पर एक सुकून सा है ,
चले जाना उसका इस तरह
तकलीफ देता तो है ,
फिर भी उसको जबरदस्ती रोकना
जादा तकलीफ देता था,
मै बहुर खुश थी उसके साथ
पर उसे इस बात का यकीं न था,
मै हमेशा उसके साथ थी मगर
वो साथ होके भीकभी मेरे साथ न था ,
मैंने ही उसे जाने दिया ये बात चुभती तो है
फिर भी पता नहीं क्यों उसका जाना सुकून दे गया
जब भी तनहा मै होती हूँ,
खुद के बहुत करीब होती हूँ ,
बहुत से सवालो के जवाब मिलते हैं
जब हम खुद के साथ होते है,