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khud ko khojne ka safar

Thursday, December 1, 2011

 


















ए हवा तू किस  शहर से आती है ?
क्यों तेरी हर लहर से उसकी महक आती है .

सबकुछ महफूज़ करने की मेरी तमाम  कोशिशे ,

उस एक झोंके से फिर से बिखर  जाती है .

मेरी खुशनुमा जिंदगी सिहर उठती है उस पल,

जब तेरे कण कण से उसकी बददुआ  की बू आती है

क्या फिर से उसने दी है मुझे बर्बाद होने की दुआ ?

क्यों तेरी हर लहर से मुझे खंजर की बू आती है .