हजरों लोगो से रोज़ मिलना जिंदगी का हिस्सा है कभी तन्हाई मे खुद से भी मिलना अच्छा लगता है .
Thursday, May 22, 2014
फिर एक कोशिश कुछ लिखने की
शिकायत बहुत थी की
ठहरी सी है ज़िन्दगी
कुछ ऐसी हलचल हुई कि
सबकुछ धुन्दला सा गया
अब वापस इंतज़ार है
लहरो के शांत हो जाने का
ताकि फिर समझ सकू
कि आगे क्या है ज़िन्दगी के
पिटारे मे मेरे लिए
फिर कोई नई उम्मीदी ?
या फिर एक नया सवेरा
या फिर फिर एक सफर
बेनाम सा ,बेमतलब सा
कभी कभी लगता है
ठोस जमीन कि मेरी तलाश
सिर्फ तलाश ही बन के रह जाए
हमेशा कि तरह ..
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आपकी इस पोस्ट को आज के ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है..
ReplyDeleteलाजवाब अहसास..बेहतरीन भावपूर्ण नज़्म..आभार
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